Friday, June 3, 2011

आत्माभिव्यक्ति के लिए


करना प्रारंभ करने पर
हो जाता है कितना कुछ
वर्ना
बैठे बैठे
घेर लेते हैं
संभावित असफलता के कई कारण
या फिर
करने के औचित्य पर प्रश्न लगा कर
हम बैठे बैठे
निष्क्रियता का हाथ थामें
देखते रहते हैं
लहरें कर्मशील सागर की

अनसुना करते
कई लहरों का बुलावा
और
उनके साथ साथ
लौट जाते हैं
हमारे हिस्से के हीरे-मोती

सब कुछ वैसा ही हो
जैसा हम चाहते हैं
संभव ही नहीं

पर कुछ गढ़ने के प्रयास में
स्वयं को गढ़ने के लिए
सृष्टा को आमंत्रित कर
उसके सान्निध्य की सौरभ का आनंद
संभव तभी है
जब हम
आत्माभिव्यक्ति के लिए
कुछ करने का श्रीगणेश करें


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
४ जून २०११               

4 comments:

vandana gupta said...

कुछ गढ़ने के प्रयास मेंस्वयं को गढ़ने के लिएसृष्टा को आमंत्रित करउसके सान्निध्य की सौरभ का आनंदसंभव तभी हैजब हमआत्माभिव्यक्ति के लिएकुछ करने का श्रीगणेश करें
अन्तिम पंक्तियो मे जीवन दर्शन दे दिया।

Unknown said...

बेहतरीन पंक्तियाँ अशोक जी बधाई

प्रवीण पाण्डेय said...

कर्मनिरत हो स्वतः व्यक्त हों।

Anupama Tripathi said...

करना प्रारंभ करने पर
हो जाता है कितना कुछ

सुंदर श्रीगणेश कविता का ..!!

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