करना प्रारंभ करने पर
हो जाता है कितना कुछ
वर्ना
बैठे बैठे
घेर लेते हैं
संभावित असफलता के कई कारण
या फिर
करने के औचित्य पर प्रश्न लगा कर
हम बैठे बैठे
निष्क्रियता का हाथ थामें
देखते रहते हैं
लहरें कर्मशील सागर की
अनसुना करते
कई लहरों का बुलावा
और
उनके साथ साथ
लौट जाते हैं
हमारे हिस्से के हीरे-मोती
सब कुछ वैसा ही हो
जैसा हम चाहते हैं
संभव ही नहीं
पर कुछ गढ़ने के प्रयास में
स्वयं को गढ़ने के लिए
सृष्टा को आमंत्रित कर
उसके सान्निध्य की सौरभ का आनंद
संभव तभी है
जब हम
आत्माभिव्यक्ति के लिए
कुछ करने का श्रीगणेश करें
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
४ जून २०११
4 comments:
कुछ गढ़ने के प्रयास मेंस्वयं को गढ़ने के लिएसृष्टा को आमंत्रित करउसके सान्निध्य की सौरभ का आनंदसंभव तभी हैजब हमआत्माभिव्यक्ति के लिएकुछ करने का श्रीगणेश करें
अन्तिम पंक्तियो मे जीवन दर्शन दे दिया।
बेहतरीन पंक्तियाँ अशोक जी बधाई
कर्मनिरत हो स्वतः व्यक्त हों।
करना प्रारंभ करने पर
हो जाता है कितना कुछ
सुंदर श्रीगणेश कविता का ..!!
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