Thursday, May 5, 2011

अपने जीवन का उत्सव मनाने



कैसे हो जाता है सहसा
धूप में नाचते पत्तों के साथ
हवा का ये खेल
मुझमें फिर से
विराट का आलिंगन करने का
एक नया उत्साह सा भर देता है

एक निशब्द गीत 
उतर का मेरी धडकनों से
गुनगुनाता है हर दिशा में

फल से लदी डालियाँ झूम झूम कर
बुला रही हों जैसे
किसी को

मेरे मन का रसीलापन
टप-टप टपकाता है
आनंद्वर्धक फल

अपने जीवन का उत्सव मनाने
सभी को आमंत्रित कर
छेड़ रहा हूँ
वो राग 
जो परे ले जाता है 
राग-द्वेष के 

परम विस्तार को आत्मसात कर
जहाँ
अपने होने की यात्रा का 
विराम मिल रहा है
यहाँ 
आदि और अंत मिले हुए हैं इस तरह
की
सहज लगता है 
 इनसे परे तक देखना 


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
५ मई २०११  

2 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

जीवन ही उत्सव है, आनन्द उठाने के लिये।

Anupama Tripathi said...

छेड़ रहा हूँ
वो राग
जो परे ले जाता है
राग-द्वेष के

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