जैसे चलते चलते
कभी भी एक वाहन किसी दूसरे वाहन से
या किसी पेड़ से
या फिर रास्ते में किसी दीवार से टकरा सकता है
ऐसे ही
मन की गाडी
ध्यान चूकने पर
शाश्वत फल का स्वाद छोड़
अपने ही किसी लघु रूप से टकरा कर
लहुलुहान कर सकती है हमें
गंतव्य तक पहुँच पाना तो दूर
टक्कर खाकर
गंतव्य का पता भूल
किसी 'क्षुद्र स्थल' तक
ले जाने को तैयार हो जाता मन
जहां पहुँच कर
एक घेरे के बंदी बन
हम कसमसाते हैं
छटपटाते हैं
मन की 'मिस्टेक' को
समझ नहीं पाते हैं
२
पूर्व स्मृतियों से
जब
किसी अनुग्रह क्षण में
प्रकट होता है
अनंत सम्भावना का सूरज
तब हमें स्मरण होता है
निश्छल प्यार का झरना
तब हम चाहते हैं
सबकी सेवा करना
तब
न जाने कैसे
मन की टक्कर से हुई टूट-फूट
ठीक हो जाती है
सरस मन तब सचमुच
आनंदित और शीतल है,
जब अनंत में रमे रहने की
भावना हो जाती प्रबल है
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२८ मई २०११
3 comments:
बहुत सुन्दर और सार्थक बात बताई आपने.
पूर्व स्मृतियों से
जब किसी अनुग्रह क्षण में
प्रकट होता है
अनंत सम्भावना का सूरज
तब हमें स्मरण होता है
निश्छल प्यार का झरना
तब हम चाहते हैं
सबकी सेवा करना
तब
न जाने कैसे
मन की टक्कर से हुई टूट-फूट
ठीक हो जाती है
सरस मन तब सचमुच
आनंदित और शीतल है,
जब अनंत में रमे रहने की
भावना हो जाती प्रबल है
आपने वाहन की टक्कर से मन की टक्कर की तुलना की और फिर मन की टक्कर से हुई क्षति के लिए मार्ग भी सुझा दिया 'स्मरण' का.
अनन्त का भाव ही आनन्ददायक है।
गहन सांसारिक बातों से मन हटाती हुई -
प्रभु चरणों का मार्ग दिखाती हुई सुंदर रचना ....
आभार.
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