Saturday, May 28, 2011

अनंत सम्भावना का सूरज


जैसे चलते चलते
कभी भी एक वाहन किसी दूसरे वाहन से
या किसी पेड़ से
या फिर रास्ते में किसी दीवार से टकरा सकता है


ऐसे ही
मन की गाडी 
ध्यान चूकने पर
शाश्वत फल का स्वाद छोड़
अपने ही किसी लघु रूप से टकरा कर
लहुलुहान कर सकती है हमें


गंतव्य तक पहुँच पाना तो दूर
टक्कर खाकर
गंतव्य का पता भूल
किसी 'क्षुद्र स्थल' तक
ले जाने को तैयार हो जाता मन

जहां पहुँच कर
एक घेरे के बंदी बन
हम कसमसाते हैं
छटपटाते हैं
मन की 'मिस्टेक' को 
समझ नहीं पाते हैं


पूर्व स्मृतियों से 
जब 
किसी अनुग्रह क्षण में
प्रकट होता है
अनंत सम्भावना का सूरज

तब हमें स्मरण होता है
निश्छल प्यार का झरना
तब हम चाहते हैं
सबकी सेवा करना

तब
न जाने कैसे
मन की टक्कर से हुई टूट-फूट
ठीक हो जाती है

सरस मन तब सचमुच
  आनंदित और शीतल है,
जब अनंत में रमे रहने की
भावना हो जाती प्रबल है  


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२८ मई २०११ 
 
         

3 comments:

Rakesh Kumar said...

बहुत सुन्दर और सार्थक बात बताई आपने.

पूर्व स्मृतियों से
जब किसी अनुग्रह क्षण में
प्रकट होता है
अनंत सम्भावना का सूरज
तब हमें स्मरण होता है
निश्छल प्यार का झरना
तब हम चाहते हैं
सबकी सेवा करना
तब
न जाने कैसे
मन की टक्कर से हुई टूट-फूट
ठीक हो जाती है
सरस मन तब सचमुच
आनंदित और शीतल है,
जब अनंत में रमे रहने की
भावना हो जाती प्रबल है

आपने वाहन की टक्कर से मन की टक्कर की तुलना की और फिर मन की टक्कर से हुई क्षति के लिए मार्ग भी सुझा दिया 'स्मरण' का.

प्रवीण पाण्डेय said...

अनन्त का भाव ही आनन्ददायक है।

Anupama Tripathi said...

गहन सांसारिक बातों से मन हटाती हुई -
प्रभु चरणों का मार्ग दिखाती हुई सुंदर रचना ....
आभार.

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