लिखने से नहीं
करने से होगा
लिखना करना नहीं
होना है
होना अपने साथ
वहां
जहाँ शून्य हो जाती हर बात
एक मौन सा रहता है साथ
और इस मौन में
खिल जाती है
कोइ मधुर बात
जिस पर
असर नहीं करता कोइ आघात
शाश्वत हरियाली का सावन आता है
कैसे हो जाता है ऐसा
कालातीत स्वयं
एक क्षण में समाता है
खिलखिला कर हमें खिलाता है
२
जब जब
ऐसे अनुपम, अलौकिक से क्षण को
सहेजने के प्रयास में
कुछ बनता-बनाता हूँ
ना जाने कैसे
इस निश्छल क्षण की आभा से
दूर हो जाता हूँ
वह नियंत्रण से परे है
है तो है
नहीं है तो नहीं है
फिर भी
लिख लिख कर
बुनता हूँ
वह वातावरण
जिससे खिंच कर
शायद चला आये वह
जो
न कहीं आता है
न जाता है
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२७ मई २०११
कुछ बनाता हूँ
या स्वयं
2 comments:
अदभुत,अदभुत,अदभुत.
कमाल की उडान भरी आपने
और शब्द नहीं हैं मेरे पास
अशोक जी,आप पर साक्षात गुरू कृपा है.
अबसे कुछ दिनों के लिए यूरोप का टूर है.
आपके ब्लॉग पर आने से वंचित हो जाऊं शायद.
आपको सस्नेह सादर नमन.
फिर भी
लिख लिख कर
बुनता हूँ
वह वातावरण
जिससे खिंच कर
शायद चला आये वह
जो
न कहीं आता है
न जाता है
sunder bhav .
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