उसने
नए उत्साह से
देखा अपने भीतर
स्वर्णिम धारा का
सुन्दर, समन्वित प्रवाह
जाने कैसे
खुल गयी
इस गोपनीय स्थल तक
दृष्टि ले जाने वाली राह
तन्मय निश्चलता में
वह
जब घास पर लेटा
उसके कद जितना हो गया आकाश
हर दिशा से
सुनाई दे रही थी बस उसकी सांस
मुग्ध मौन में
संचरित निष्कलंक विश्वास
सौंप दी रास उसको
सारा जग जिसका रास
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२० मई २०११
2 comments:
मुग्ध मौन में
संचरित निष्कलंक विश्वास
सौंप दी रास उसको
सारा जग जिसका रास
आपका निष्कलंक विश्वास अटल हो
आपका समर्पण पूर्ण समर्पण हो
बस यही दुआ और कामना है.
बहुत रम रहें हैं अशोक भाई,आपके भावों में बह कर अच्छा लगता है.आनंद देतें है, आपके निर्मल भाव..
जाने कैसे
खुल गयी
इस गोपनीय स्थल तक
दृष्टि ले जाने वाली राह
sunder abhivyakti.
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