साथ कहाँ कुछ जाने वाला है
सब माटी मिल जाने वाला है
आस्मां छूने की जिद में, मत भूलो
उस मैय्या को, जिसने तुमको पाला है (१)
आनंद का अधिकार तुम्हारा अपना है
बाकी सब तो आता-जाता सपना है (२)
नित्य तुम्हारे प्यार से साँसों का श्रृंगार
पग पग खुलता जाए है, मुझ पर मेरा विस्तार (३)
अपने घर का केंद्र वहां है
तेरा सच्चा ध्यान जहां है (४)
मन में एक उल्लास नया सा गाता है
सांझ ढले, गायों के संग वो आता है (५)
शाश्वत है सौंदर्य वो, जिसमें सबसे प्रीत
सूर्य किरण दिखला रही, ऋषि-मुनियों की रीत (६)
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
६ मई २०११
2 comments:
खुलता जा रहा है विस्तार और दिख रही है स्वस्ति भीतर ...!!
बहुत सुंदर रचना ....!!
उसी रीति में सुख सारा है।
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