अपनेपन का स्वाद निराला होता है
जैसे माँ के हाथ निवाला होता है
औरों के दुःख कम करने की चाह जिसे
वो बंदा कितना मतवाला होता है
उसके देखे में, जाने ऐसा क्या है
साँसों में एक नया उजाला होता है
नफरत के बादल ना बरसे वहां कभी
जहाँ दिलों ने प्यार संभाला होता है
घर के चप्पे चप्पे को मालूम रहे
घरवाली बिन क्या घरवाला होता है
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
५ मई २०११
2 comments:
असहाय होता है।
अपनेपन का स्वाद निराला होता है जैसे माँ के हाथ निवाला होता है
औरों के दुःख कम करने की चाह जिसे वो बंदा कितना मतवाला होता है
सुन्दर भाव,अनुपम अभिव्यक्ति.
'घरवाली बिन घरवाला' का भान तो घर और घरवाले को ही ज्यादा पता होता है.काश! घरवाली भी अहसास कर पाए उनके इस भान को.
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