जैसे बच्चे को
बाँहों में झूल कर
एक जोड़ी हाथों से
दूसरे जोड़ी हाथों में
जा पहुंचना सुहाता है
उछल कर
सुरक्षित झटके में
जब वो नन्हा खिलखिलाता है
सारा आँगन
निश्छल, कोमल किलकारी
से गूँज गाता है
ऐसे ही मधुर तन्मयता का भाव
धरती पर छा जाता है
जब 'एक दिन' हमें उछाल कर
'दूसरे दिन' के हवाले
कर जाता है
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
मंगलवार, ३ मई २०११
3 comments:
और हम उस समय सोते रह जाते हैं।
सुंदर अभिव्यक्ति।
हर सुबह का सूरज नया रूप ले कर मुस्कुराता है |सूरज को उगते हुए देखना .... सच में -एक मासूम बच्चे की खिलखिलाहट की ही तरह -दिव्य अनुभूति है ...!!
sunder rachna .
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