पलट कर
मिटा दिया उसने
वो सब चिन्ह
जिनसे फैलती थी उदासी
अपने साथ
कोठारी में
ले आया वो
धूप की संगत ज़रा सी
२
उसने
फिर एक बार
दृष्टि को
काल मुक्त झरने में
करवा दिया स्नान
पक कर
टपक गया
काल वृक्ष से स्वतः
हर समस्या का समाधान
३
वो इस बार
घर लौटा था
खाली हाथ
पर इस बार
उसके आने मात्र से
बदल गए हालात
४
यह क्या हो गया
किसका स्पर्श था
कहाँ से फूटा
यह नया झरना आभार का
जाग गया बोध
फिर से उसमें
नित्य मुक्त करते
निराकार के प्यार का
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२६ अप्रैल २०११
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पक कर
टपक गया
काल वृक्ष से स्वतः
हर समस्या का समाधान
आस्वादन ...प्रसाद का ....प्रभु कृपा का .....
आभार .....!
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