Monday, April 25, 2011

निराकार के प्यार का



पलट कर
मिटा दिया उसने
वो सब चिन्ह
जिनसे फैलती थी उदासी
अपने साथ
कोठारी में 
ले आया वो
धूप की संगत ज़रा सी
 
 
उसने
फिर एक बार
दृष्टि को
काल मुक्त झरने में
करवा दिया स्नान
पक कर
टपक गया
काल वृक्ष से स्वतः
हर समस्या का समाधान
 
 
वो इस बार
घर लौटा था
खाली हाथ
पर इस बार
उसके आने मात्र से
बदल गए हालात
 
 
यह क्या हो गया
किसका स्पर्श था
कहाँ से फूटा
यह नया झरना आभार का
जाग गया बोध
फिर से उसमें
नित्य मुक्त करते
निराकार के प्यार का 
 
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२६ अप्रैल २०११    

1 comment:

Anupama Tripathi said...

पक कर
टपक गया
काल वृक्ष से स्वतः
हर समस्या का समाधान

आस्वादन ...प्रसाद का ....प्रभु कृपा का .....
आभार .....!

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