पहले अधीरता,
उतावलापन
अहंकार
फिर
धैर्य
शांति और
कृतज्ञतापूर्ण प्यार
पहले पसंद-नापसंद
अनबन
कुछ करने
कुछ बनने का आग्रह प्रबल
फिर समर्पण
समन्वय
साँसों में शाश्वत का संबल
पहले अलगाव
दीवार
क्षुद्रता, एकाकीपन और असंतोष का गान
फिर सामिप्य
सार
आत्मीयता, आनंद और तन्मयता की तान
पहले और बाद के मध्य
एक क्षण सम्भावना का
कृपा के नए झरने में
करवा देता है स्नान
अहा!
हमें धारण करने वाला
कितना दयालु
अपार, अनंत
कितना महान
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
मंगलवार, २६ अप्रैल २०११
2 comments:
अहा!
हमें धारण करने वाला
कितना दयालु
अपार, अनंत
कितना महान
उस संभावित क्षण के लिए अथक प्रयास करते रहने का संबल देती हुई रचना ....
आभार ..
धन्यवाद अनुपमाजी
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