उसने सूरज से अनुमति लेकर
उँडेल दिया
सुनहरा उजियारा
मन की धरती पर
प्रकट हुआ
कालातीत का
अप्रतिम सौंदर्य
वह एक सूक्ष्म प्रदीप्त पुंज
करूणा का
फैलने लगा है
ऐसा बोध भी न हुआ
बस उसके विस्तार में
मिटता गया भेद
खोने और पाने का
उपलब्ध हो गयी
एक निरंतर उपलब्धि
शेष हो गया
रुकने और चलने का भेद
स्थिर गति के आल्हाद में
लीन होकर
जब लुप्त हुआ मैं
मेरा मिटना पूर्ण हो जाना कहलाया
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
मंगलवार, १९ अप्रैल २०११
1 comment:
प्रकट हुआ
कालातीत का
अप्रतिम सौंदर्य
saundaryapoorna abhivyakti ....!!
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