एक लय के साथ बह ले बन के धारा
सांस की उद्गम स्थली ने है पुकारा
छोड़ कर देखो, सभी कुछ है हमारा
पकड़ने की जिद लिए, हर एक हारा
देख स्वागत में खड़ा शाश्वत बुलाये
छूट कर 'मैं' से ही उसको देख पाए
सिमटने का खेल तज, विस्तार पा ले
गीत जो हरदम तेरा, वो गीत गा ले
छल की गलियों में नहीं होगा गुजारा
झूठ के इस खेल में मत फंस दुबारा
खुद को बंदी मान कर मत बन बेचारा
सत्य के संग चल, उसी का है सहारा
देख अब अपना परम वैभव संभल कर
देख दुनिया आस्था के स्वर में ढल कर
त्याग कर अब अपना खंडित वेश सारा
एक लय के साथ बह ले बन के धरा
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१८ अप्रैल 2011
1 comment:
एक लय के साथ बह ले बन के धरा
pravahmayi abhivyakti ....!!
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