उसने कहा था
सांसों की लहर
धो रही है
सारी उद्विग्नता
उंडेल रही है
अनिर्वचनीय आभा
उसने कहा था
तुम शांति हो
तुम आनंद का उच्छलन हो
उसकी आश्वस्ति के स्पर्श ने
मुझे आलोकित शून्य में
बिठाया
और
चिर नूतन की रसमयी संनिद्धि
का मधुर साक्षी बनाया
वह लौट गया
मुझे मुझसे मिलवा कर
और मैं
लौटता हूँ उससे मिलने
उन क्षणों तक
जहाँ मेरे लिए
सुलभ होता है परम विश्रांति का स्वाद
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१५ अप्रैल २०११
2 comments:
उसी शान्ति की चाह।
सुलभ होता है परम विश्रांति का स्वाद
bahut sunder bhav....shanti pradan karta hua .
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