Friday, April 15, 2011

परम विश्रांति का स्वाद



उसने कहा था
सांसों की लहर 
धो रही है
सारी उद्विग्नता

उंडेल रही है
अनिर्वचनीय आभा

उसने कहा था
तुम शांति हो
तुम आनंद का उच्छलन हो
उसकी आश्वस्ति के स्पर्श ने
मुझे आलोकित शून्य में
बिठाया 
और 
चिर नूतन की रसमयी संनिद्धि 
का मधुर साक्षी बनाया

वह लौट गया
मुझे मुझसे मिलवा कर

और मैं
लौटता हूँ उससे मिलने
उन क्षणों तक
जहाँ मेरे लिए
सुलभ होता है परम विश्रांति का स्वाद


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१५ अप्रैल २०११   


         
  

2 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

उसी शान्ति की चाह।

Anupama Tripathi said...

सुलभ होता है परम विश्रांति का स्वाद
bahut sunder bhav....shanti pradan karta hua .

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