Sunday, April 10, 2011

जीवन-मृत्यु के पार


बस धीरे धीरे
पुकार की श्रंखला का
हो ही जाता है असर,
एक दिन माँ 
 अनछुए उजियारे से
 भर देती है घर

कण कण में जाग्रत हो जाते
मधुर आश्वस्ति के
दुर्लभ स्पंदन,
संशयों से छूट कर
शुद्धि में 
निखर जाता मन 

फिर 
एक हो जाते
प्यार, पुकार और
अनंत का सत्कार, 
ऐसे 
एक मंगलमय ज्योत्स्ना 
कर देती
जीवन-मृत्यु के पार 
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१० अप्रैल 2011 

  

4 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

ऐसे ही एक स्पंदन की प्रतीक्षा में जीवन।

Anupama Tripathi said...

उज्जवल विश्वास से भरी रचना |

Ashok Vyas said...

धन्यवाद प्रवीणजी, अनुपमा जी और वंदनाजी

अनामिका की सदायें ...... said...

vishwas se paripoorn rachna.

सुंदर मौन की गाथा

   है कुछ बात दिखती नहीं जो  पर करती है असर  ऐसी की जो दीखता है  इसी से होता मुखर  है कुछ बात जिसे बनाने  बैठता दिन -...