Saturday, April 9, 2011

उदारता का अपार आकाश


और फिर 
यूँ लगा सब कुछ 
देख रहा हूँ नए सिरे से

हर बात के लिए
समझ का नया परिधान
भेजा है किसी ने
जैसे राज महल तक
हीरे मोती भरे थाल माथे पर धरे
आ गए हों
दूत किसी ऐश्वर्यवान के

समझ नए वस्त्र पहन कर
निखर गयी
अनुभूति तक पहुच गयी
अद्वितीय शांति

उदारता का अपार आकाश
हो गया जाग्रत

सहज हो गया
सबके लिए
क्षमाशीलता का परम सुखदाई भाव 

स्व-राजमहल के शिखर से
समझ के नूतन परिधान दाता को देखने के प्रयास में
दिखाई दे गया
सूर्यकिरण में झिलमिलाता
एक रूप
अनंत का


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
९ अप्रैल २०११    

2 comments:

Anupama Tripathi said...

समझ नए वस्त्र पहन कर
निखर गयी
अनुभूति तक पहुच गयी
अद्वितीय शांति

bahut sunder abhivyakti.

प्रवीण पाण्डेय said...

सूर्य उसी का, चन्द्र उसी का।

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