Thursday, April 7, 2011

जिन्हें हम कभी नहीं जान पाते हैं



बात शुरू करने के पहले
कोइ एक सिरा
ढूंढता है 
हर कोई

कभी सजगता से
कभी बिना सोचे

कोई एक सूक्ष्म तरंग
साथ चलते हुए
देती है शब्द, भाव, विचार, सपने

बिरला ही करता है प्रयोग करता
चयन की शक्ति का 

और 
जो बहुत सतर्कता से
करने लगता है अभ्यास
चुन कर सर्वश्रेष्ठ को
अपनाने का
बस उसी को गाने का

अक्सर
वह मौन हो जाता है

फिर एक ऐसा क्षण आता है
जब चुनने का भाव भी छूट जाता है
वह क्षण
जब
चुनने वाला और चुना गया एक हो जाते हैं

तब
वे उन लहरों के
उद्गम हो जाते हैं
जिनसे जग में सुन्दरता और
सार के दरसन हो जाते हैं

अक्सर वे लोग
जिन्हें हम कभी नहीं जान पाते हैं
हमारे लिए सार के संकेत और गति सुलभ करवाते हैं


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
            गुरुवार, ७ अप्रैल 2011           

3 comments:

Anupama Tripathi said...

अक्सर वे लोगजिन्हें हम कभी नहीं जान पाते हैंहमारे लिए सार के संकेत और गति सुलभ करवाते हैं

इश्वर इसी रूप में मिलते हैं शायद .
प्रभावी रचना .आभार

प्रवीण पाण्डेय said...

विचारों की सूक्ष्म तरंगें न जाने कहाँ कहाँ से उठ आती हैं।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत सुन्दर ...

सुंदर मौन की गाथा

   है कुछ बात दिखती नहीं जो  पर करती है असर  ऐसी की जो दीखता है  इसी से होता मुखर  है कुछ बात जिसे बनाने  बैठता दिन -...