Tuesday, April 5, 2011

सबके साथ, सहज अपनापन


भाव शुद्ध हो
कर्म हो उज्जवल
गहरे ठहरे
यह मन चंचल
ध्यान केंद्र पर
रहे निरंतर
प्रेम प्रकाश
बढ़ाये हर पल
 
 
अब उलझन के पार निकल ले
अपना जीवन, आप बदल  ले
रस्ते की फिसलन बोले है
निकल सकेगा, जरा संभल ले
 
 
माँ के आने की तैय्यारी
जिससे है ये सृष्टि सारी
वो सबकी, पर कोई-कोई ही
उसकी ममता का अधिकारी
 
 
फिर से करूँ पुकार प्यार से
मुझको फिर तू मिला सार से
बता शांत रह पाऊँ कैसे
मिलना हो जब अहंकार से

 
मगन प्रेम में तेरे साईं
सारा जग, तेरी परछाई
तुझको देखा, जादू जागा
अपनी बस्ती, बहुत सुहाई
 

उभर गया फिर गान सनातन
निखर गया शाश्वत से आँगन
  परम शांति का बोध उजागर 
सबके साथ, सहज अपनापन
 
 
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
मंगलवार, ५ अप्रैल 2011    
 

    
   
   

             

4 comments:

Anupama Tripathi said...

माँ के आने की तैय्यारीजिससे है ये सृष्टि सारीवो सबकी, पर कोई-कोई हीउसकी ममता का अधिकारी ४ फिर से करूँ पुकार प्यार सेमुझको फिर तू मिला सार सेबता शांत रह पाऊँ कैसेमिलना हो जब अहंकार से

माँ की कृपा खूब हुई है आप पर -
शब्द शब्द में भंडार है ज्ञान का -
सुंदर- मन को शांत करने वाली रचना -
आश्चर्य है -प्रतिदिन इतनी अच्छी अच्छी रचना कैसे लिख लेते है आप ?

प्रवीण पाण्डेय said...

सुन्दर अनुकरणीय शिक्षा।

Arun sathi said...

अब उलझन के पार निकल ले
अपना जीवन, आप बदल ले
रस्ते की फिसलन बोले है
निकल सकेगा, जरा संभल ले


खूब। आभार।

Ashok Vyas said...

अनुपमाजी, धन्यवाद,ठीक कहा आपने,ऐसा लगता है
कविता कृपा को देखने और सहेजने में बड़ी सहायक है
धन्यवाद प्रवीणजी और अरूणजी ढेरों शुभकामनाओं सहित

सुंदर मौन की गाथा

   है कुछ बात दिखती नहीं जो  पर करती है असर  ऐसी की जो दीखता है  इसी से होता मुखर  है कुछ बात जिसे बनाने  बैठता दिन -...