वह
जो
कहता-सुनता है
उसे लेकर
उसके आगे
एक विराम की विश्रांति
पाकर
मौन की अनछुई मधुरता लेकर
लौटा
वह
और उसकी लबालब करूणा ने
छू लिया मुझे
इस स्पर्श की कांति में दमकता
महसूस करता
अपनी मुस्कान में
विराट का सहज निवास
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१ अप्रैल २०११
(यह कविता स्वामी श्री ईश्वारानंद गिरिजी महाराज की पुस्तक
'आनंद मीमांसा' के पुनः पढ़ते हुए
अनावृत होती स्पष्ट को पकड़ने के प्रयास की अभिव्यक्ति )
2 comments:
विराटता में सहजता दिखने लगती है।
जय शंकर भैया,
बहुत अच्छा लगा पढ़ कर।
विराट का सहज निवास हर दिन बना रहे। मौन की मधुरता हम भी महसूस करें।
बहुत सुंदर।
अर्बुदा
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