विस्मय भी होता है चंचल
हमें छोड़ जाता है हर पल
तरह तरह से भरा है उसने
मैंने जब फैलाया आँचल
पानी और अधिक पावन था
जब जाना ये है गंगाजल
सन्दर्भों में शीतलता है
और कभी जागे दावानल
उसने नहीं कहा था कुछ भी
पर मैंने तो पाया संबल
पहले हम उससे डरते थे
अब हमसे डरता है जंगल
अब वो बात फूल लगती है
जिस पर हो जाता था दंगल
अपनेपन का किस्सा लेकर
आँगन आँगन बरसे बादल
दर्द बाँटना सरल नहीं है
एक नहीं, दोनों हैं घायल
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२ अप्रैल २०११
5 comments:
बहुत ही सुरमयी कविता।
पानी और अधिक पावन था
जब जाना ये है गंगाजल
बहुत सुन्दर ...अच्छी लगी रचना
उत्तम कविता...
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उसने नहीं कहा था कुछ भीपर मैंने तो पाया संबल
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को आनंद के साथ धन्यवाद
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