Saturday, April 2, 2011

दर्द बाँटना सरल नहीं है


विस्मय भी होता है चंचल 
हमें छोड़ जाता है हर पल

तरह तरह से भरा है उसने
मैंने जब फैलाया आँचल

पानी और अधिक पावन था
जब जाना ये है गंगाजल

सन्दर्भों में शीतलता है
और कभी जागे दावानल

उसने नहीं कहा था कुछ भी
पर मैंने तो पाया संबल

पहले हम उससे डरते थे
अब हमसे डरता है जंगल

अब वो बात फूल लगती है
जिस पर हो जाता था दंगल

अपनेपन का किस्सा लेकर
आँगन आँगन बरसे  बादल

 दर्द बाँटना सरल नहीं है
एक नहीं, दोनों हैं घायल   


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२ अप्रैल २०११  

  

5 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

बहुत ही सुरमयी कविता।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

पानी और अधिक पावन था
जब जाना ये है गंगाजल

बहुत सुन्दर ...अच्छी लगी रचना

Sushil Bakliwal said...

उत्तम कविता...

यदि चाहें तो इन्हें भी देखें-

नये ब्लाग लेखकों के लिये उपयोगी सुझाव.

युवावय की चिंता - बालों का झडना ( धीमा गंजापन )

Anupama Tripathi said...

उसने नहीं कहा था कुछ भीपर मैंने तो पाया संबल



मन की शक्ति का व्याख्यान करती सुंदर सोच से भरी कविता -

Ashok Vyas said...

प्रवीणजी, संगीताजी, सुशीलजी और अनुपमजी
को आनंद के साथ धन्यवाद

सुंदर मौन की गाथा

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