तुम्हारी दी हुई
पूंजी के प्रकाश का असर
मेरा पथ समाप्त होने से परे तक जाता है
शुद्ध हुए बिना
इस विस्मयकारी प्रकाश को
अपना लेना, संभव नहीं हो पाता है
यह सूक्ष्म, संवेदनात्मक ज्ञान
पूरी तरह आत्मसात
नहीं कर पाया,
कभी इस बात को लेकर
व्याकुलता से
छटपटाया,
पर आज
ये सोच कर
अपने सौभाग्य पर इठलाया,
की मैंने
तुम्हारी कृपा से
सत्य को छू लेने का
दुर्लभ अनुभव तो पाया
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२६ मार्च २०११
4 comments:
कृपा अहैतुक।
सकारात्मक दृष्टिकोण से भरी भावपूर्ण रचना -
बधाई.
अहोभाग्य सरजी कि आपने ऐसा अनुभव किया। एक बार फिर सुन्दर कविता। प्रेरक भी कि शुद्ध हुए बिना इस प्रकाश को पाना संभव नहीं हो पाएगा।
आभार।
praveenjee, anupamajee aur Arunjee
kripa kee lehron ne hee hamein is tarah milvaya hai
bahut bahut dhanywaad
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