Saturday, March 26, 2011

दुर्लभ अनुभव


तुम्हारी दी हुई 
 पूंजी के प्रकाश का असर
मेरा पथ समाप्त होने से परे तक जाता है
 शुद्ध हुए बिना
इस विस्मयकारी प्रकाश को
अपना लेना, संभव नहीं हो पाता है  


यह सूक्ष्म, संवेदनात्मक ज्ञान
पूरी तरह आत्मसात 
नहीं कर पाया,
कभी इस बात को लेकर
व्याकुलता से
छटपटाया, 
पर आज 
ये सोच कर
अपने सौभाग्य पर इठलाया,
की मैंने
तुम्हारी कृपा से
सत्य को छू लेने का
दुर्लभ अनुभव तो पाया
  
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२६ मार्च २०११  
 

4 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

कृपा अहैतुक।

Anupama Tripathi said...

सकारात्मक दृष्टिकोण से भरी भावपूर्ण रचना -
बधाई.

Arun sathi said...

अहोभाग्य सरजी कि आपने ऐसा अनुभव किया। एक बार फिर सुन्दर कविता। प्रेरक भी कि शुद्ध हुए बिना इस प्रकाश को पाना संभव नहीं हो पाएगा।

आभार।

Ashok Vyas said...

praveenjee, anupamajee aur Arunjee

kripa kee lehron ne hee hamein is tarah milvaya hai

bahut bahut dhanywaad

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