१
उसने दो सिक्के
देकर मेरे हाथ में
मुस्कुरा कर दे दिया आश्वासन
सारी दुनिया खरीद सकते हो इनसे तुम
२
उसी पेड़ के नीचे
बैठे बैठे
न जाने कैसे
एक क्षण में
हर लिया किसीने
मेरा सब दारिद्र्य
दिखने को तो
नहीं दिखी कोइ दौलत
पर
समृद्धि का स्रोत बन
आनंद कोष लुटाने को
तत्पर था मैं
संसार के सबसे बड़े सम्राट की तरह
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२१ मार्च २०११
3 comments:
समृद्धि का स्रोत बन
आनंद कोष लुटाने को
तत्पर था मैं
संसार के सबसे बड़े सम्राट की तरह
मन के प्रकाश से जो हासिल हो जाए
वही दौलत सब से बड़ी और उत्तम है ...
अस्पष्ट होते हुए भी
कुछ झलक रहा है शब्दों में .... !
सच कहा आपने, दारिद्र्य तो मन से आता है।
Daanishji 'aspashtta' aur 'jhalak' dono, dekh paane ke liye aapko sadar naman
Srijan path par nity utsaah badhaate
praveenjee ka abhaar
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