Sunday, March 20, 2011

आनंद रसधार


श्वेत शिखर
निर्मल विस्तार
जैसे मुस्कुराता
सीमारहित प्यार


छूट गए
स्वतः विकार
मिलन 
मन के उस पार


न रुकना
न चलना
पर उससे
चलता संसार


मेरा मौन 
छू लिया उसने
बहे है
  आनंद रसधार

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
रविवार, २० मार्च २०११   

                

4 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

सुन्दर क्षणिकाएं ..

प्रवीण पाण्डेय said...

बहुत ही सुन्दर।

Ashok Vyas said...

dhanyawaad Sangeetajee aur
Praveenjee

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 22 -03 - 2011
को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

http://charchamanch.uchcharan.com/

सुंदर मौन की गाथा

   है कुछ बात दिखती नहीं जो  पर करती है असर  ऐसी की जो दीखता है  इसी से होता मुखर  है कुछ बात जिसे बनाने  बैठता दिन -...