आधी उम्र बीतने के बाद
एक दिन
खोल कर देखी वो चिट्ठी
जो आई थी
सांसों के साथ
जिसमें लिखा था
तुम्हारा जीवन
मिल जुल कर बनायेंगे
'मैं और तुम'
मिलता रहूँगा
धरती-गगन के रूप में
जल और पवन के रूप में
काल सखा भी मैं और
मिलूंगा अगन के रूप में
चिट्ठी पढ़ कर ये जान पाया
उसने तो अपना वचन निभाया
पग पग पर मेरे साथ आया
बस मैं ही
सजगता की महिमा समझ पाया
मैंने अपना कर्त्तव्य नहीं निभाया
बस यही देखता रहा, क्या खोया, क्या पाया
सब कुछ देखा पर स्वयं को ना देख पाया२
अब प्रसन्नता की एक नयी झांकी है
स्वर्णिम है हर क्षण, जो जो बाकी है
स्व के संगीत को सुनने में सजग
नित्य मुखर सुन्दरता आत्मा की है
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
शनिवार, १९ मार्च २०११
1 comment:
आत्मा की सुन्दरता हमें सजग रखे अपने प्रति।
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