Saturday, March 19, 2011

सजगता की महिमा


आधी उम्र बीतने के बाद
एक दिन
खोल कर देखी वो चिट्ठी
जो आई थी 
सांसों के साथ

जिसमें लिखा था
तुम्हारा जीवन
मिल जुल कर बनायेंगे
'मैं और तुम'

मिलता रहूँगा
धरती-गगन के रूप में
जल और पवन के रूप में
काल सखा भी मैं और
   मिलूंगा अगन के रूप में     

चिट्ठी पढ़ कर ये जान पाया
उसने तो अपना  वचन निभाया 
पग पग पर मेरे साथ आया
बस मैं ही
 सजगता की महिमा समझ पाया
मैंने अपना कर्त्तव्य नहीं निभाया
बस यही देखता रहा, क्या खोया, क्या पाया
                                                      सब कुछ देखा पर  स्वयं को ना देख पाया



अब प्रसन्नता की एक नयी झांकी है
स्वर्णिम है हर क्षण, जो जो बाकी है
 स्व के संगीत को सुनने में सजग 
नित्य मुखर सुन्दरता  आत्मा की है   

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
शनिवार, १९ मार्च २०११  
         

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

आत्मा की सुन्दरता हमें सजग रखे अपने प्रति।

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