मौन ही हो आस पास
हमेशा
ना आवश्यक है
ना संभव
मौन अपने भीतर
मधुर रस के साथ
बनाए रखने का अभ्यास
करते हुए
सिखाता है कोइ
बंधन रहित जुड़ाव
और
जुड़ाव रहित बंधन
२
धैर्य के साथ
श्रद्धा के स्वर्णिम आलोक में
हीरे को तराशने वाले कारीगर की तरह
देख कर
खट्टे-मीठे अनुभव
एक काँटा यहाँ हटाता हूँ
एक चुभन वहां मिटाता हूँ
अनंत के स्मरण से
क्षमाशीलता की सौरभ पाता हूँ
आग्रहों के अतिक्रमण को हटा कर
फिर से नया हो जाता हूँ
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
गुरुवार, १७ मार्च 2011
3 comments:
सिखाता है कोइ
बंधन रहित जुड़ाव
और
जुड़ाव रहित बंधन
बहुत सुन्दर ...अच्छी प्रस्तुति
आग्रहो का अतिक्रमण हटाना पड़ेगा, बहुत ही सुन्दर विचार।
dhanyawaad Sangeetaji aur
Praveenjee.
mukti kee anubhuti sulabh ho hamein,
aisee prarthna sahit
Post a Comment