Tuesday, March 15, 2011

अवश्य उतरेगी भोर


कई पीढियां 
करती रहीं आतंरिक अनुसन्धान
फिर जाकर
समझ आयी मानवता की शान
जान पाए
समस्या में ही निहित होता है समाधान
और जो आधार है साँसों का
वो साँसों में ही रहता है विद्यमान

अब बस इतना है
की साँसों के आवागमन पर देना है ध्यान
और उनके संधि स्थल से
सुन लेना है शाश्वत का मधुर आव्हान

 साथ हो चाहे हमारे 
 इच्छाओं का कोलाहल या अनिश्चय का शोर
सूरज का आश्वासन है
घने अँधेरे को समेटने, अवश्य उतरेगी भोर



अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
मंगलवार, १५ मार्च २०११   

         

2 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

सच कहा, ध्यान से देखा जाये तो समस्या के निर्माण में ही छिपा रहता समाधान।

Arun sathi said...

सूरज का आश्वासन है
घने अँधेरे को समेटने, अवश्य उतरेगी भोर

बहुत ही प्रेरक कविता और आध्यात्मिक भी।

दूर देश में रहकर व्यस्तताओं कें बीच ऐसी रचना आपकी रचनाधर्मिता की वानगी है।

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