विनाश का चेहरा भी
कितने रूप और प्रभाव लिए होता है
किसी का मिटता है संसार
किसी का मनोरंजन होता है
२
और फिर
ठहर गयी मानस में
धारा की छेड़-खानी
मिटते हुए चित्रों में
छुपी अमिट कहानी
सुन्न हो गया मन
मंद हो गयी रवानी
प्यास नहीं प्यासों को
लील गया पानी
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१४ मार्च २०११
शाम सभा
2 comments:
प्रकृति का कुद्धनाद।
सुन्न हो गया मन
मंद हो गयी रवानी
प्यास नहीं प्यासों को
लील गया पानी
सही कहा सरजी यह धरा से छेड़खानी का ही परिणाम है। एकमद सटीक लिखा।
Post a Comment