Monday, March 14, 2011

हर रंग में


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सात रंग तब दीखते हैं
जब प्रिज्म से होकर आते हैं
हम सब अद्भुत प्रिज्म हैं
एक रंग के कई कई रंग बनाते हैं


केंद्र एक
विस्तार को जन्म देकर
चरों तरफ 
प्प्रकषित कर लालिमा
इस तरह उजियारे की धारा बहाता है
की चमकती लहरों के खेल में भी
केन्द्रीय स्थल का स्मरण खो जाता है 


पहले लाल
फिर पीला
फिर लाल और पीले का मिश्रण
उसने मेरी दृष्टि को
तरह तरह के परिधान पहनाये
और फिर
सब कुछ समेट कर
दे दिया मुझे आमंत्रण
जब सीमित दृष्टि छोड़ कर
मेरे मर्म को अपनाओगे
हर रंग में
मुझे देख पाओगे


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका

१४ मार्च २०११   
तो     

3 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

रंग नहीं तो श्याम, सब रंग तो श्वेत, हर रंग में वही है।

Anupama Tripathi said...

बिलकुल ठीक लिखा है -
प्रभु की महत्ता को महसूस करने के लिए असीमित करनी पड़ेगी दृष्टि

Anupama Tripathi said...
This comment has been removed by the author.

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