दिन के आगमन का संकेत देती
एक मद्धम उजियारी परत
बिछ गयी है आस्मां में
पिघलते हुए पलों में
घोल सकता हूँ
अमृत
अगर
तुम्हारी ओर देखता रहूँ
अब न कोई कसक, ना कोई शिकायत
ना किसी चकाचौंध का आकर्षण
ध्यान है अनवरत
तुम्हारी ही ओर
फिर भी
दिखता है सारा जगत
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१० मार्च २०११
3 comments:
ध्यान है अनवरत
तुम्हारी ही ओर
फिर भी
दिखता है सारा जगत
बहुत सुंदर अनुभूति .
badhai .
ध्यान की परमावस्था।
dhanywaa anupamaji aur Praveenjee
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