दुधमुहा दिन
तुतलाती बोली में
कोमल नन्हे हाथ से
खींच कर मेरा ध्यान
पूछ रहा है
'क्या उपहार लाये हो मेरे लिए?'
२
वैसे
दिन तो स्वयं एक उपहार है
समझ विकसित होने पर
जान लेते हैं हम
उपहार
कहीं बाहर से नहीं आता
जो है
पहले से है
पास हमारे,
जब कोई उसे दिखा देता है
सारे जीवन को उपहार बना देता है
३
मेरे जीवन को उपहार बनाने वाले
जाने-अनजाने
हर सम्बन्ध के नाम
अर्पित है
ज्योतिर्मय दीप सा
यह अनुपम क्षण
जिसमें सम्मिलित हैं
"रसमय मौन
अनिर्वचनीय संतोष
अडिग आस्था
और
नित्य शुद्ध प्रेम"
अब मुखरित संवाद गंगा में
कर यह 'मंगल दीप' प्रवाहित
हो रहा तन्मय
ले शरण इस
चिर-ज्योत्स्ना की
जो आधार है हम सबका
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
रविवार, ६ मार्च २०११
8 comments:
कविताएँ बहुत अच्छी लगीं| धन्यवाद|
"रसमय मौन
अनिर्वचनीय संतोष
अडिग आस्था
और
नित्य शुद्ध प्रेम"
यही आधार हो हमारा। बहुत सुन्दर।
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (7-3-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
हो रहा तन्मय
ले शरण इस
चिर-ज्योत्स्ना की
जो आधार है हम सबका
बहुत गहन सोच के बाद लिखी है ये कृति-
बहुत सकारात्मक सोच दे रही है -
बधाई एवं शुभकामनाएं
अर्पित है
ज्योतिर्मय दीप सा
यह अनुपम क्षण
जिसमें सम्मिलित हैं
"रसमय मौन
अनिर्वचनीय संतोष
अडिग आस्था
अच्छी कविताबधाई एवं शुभकामनाएं
Pataliji, Praveenjee, Vandnajee, Anupamaji aur Kishwanshjee
apne shridaytapurn shabdon se kavita ko vistaar dene ke liye hriday se abhaar, dhanywaad
bahut hi achchi sundar rachna !
अर्पित है
ज्योतिर्मय दीप सा
यह अनुपम क्षण
जिसमें सम्मिलित हैं
"रसमय मौन
अनिर्वचनीय संतोष
अडिग आस्था
और
नित्य शुद्ध प्रेम"
गहन चिंतन से परिपूर्ण बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
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