बस यूं ही
अच्छा लगता है
किसी संख्या का बढ़ना
किसी नए सम्बन्ध का जुड़ना
चलते चलते पहचान पक्की करने
किसी का हमारी ओर मुड़ना
बस यूं ही
अच्छा लगता है
पारस्परिक जुड़ाव
सम्मान का भाव
कुछ अच्छा करने का चाव
और चलते चलते किसी
छायादार पेड़ के नीचे पड़ाव
बस यूं ही
अच्छी लगती हैं
वो बातें
जिनका कोई मोल नहीं है
जैसे पेड़ हिला कर
शाखा पर लटकी
बारिश की बूंदों को बुलाना
थोडा सा भीगना
फिर पेड़ के नीचे से भाग जाना
बस यूं ही
ना जाने कब
हम उस दृष्टि का हिस्सा बन जाते हैं
जहाँ हर अच्छी बात की कीमत लगाना सिखाते हैं
और फिर चलते चलते बस यूं ही, हर बार
अच्छा लगने के अनुभव से बस थोड़ी दूर रह जाते हैं
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
सोमवार, ७ मार्च २०११
1 comment:
पता नहीं अच्छा लगने की चाह में किनारे पहुँचने से पहले ही आस छोड़ बैठे।
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