वह
जरूरी है जो जीवन के लिए
उसे लेकर
होता जाता है
सब कुछ समन्वित
बोध इसका सुलभ है
धरती से
जल से
अग्नि से
वायु से
और आकाश से
पर
हम वहां देखते हैं
जहाँ जरूरी नहीं
गैर-जरूरी उभर आता है
हमारा हिस्सा बन जाता है
और
पग पग पर
एक नयी टूटन से हमारा परिचय करवाता है
शांति का अथाह सागर
जो बिलकुल यहाँ है
पास में अपने
साथ में अपने
एक मरीचिका सा लगने लग जाता है
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
बुधवार, ३ मार्च २०११
1 comment:
स्वयं से हो साक्षात्कार।
Post a Comment