लो तोड़ लो
पक गया है फल
बुला कर कहता दिखा
साधना वृक्ष
और
एक परिपूर्ण मौन में
स्वाद फल का
फ़ैल गया
हर तरफ
२
सीमा आरोपित नहीं
स्वतः स्फूर्त
सहजता से बनती गयी जो
अपनी ही पहचान की तरह
उस सृजनात्मक सीमा में भी
गाता रहा असीम
जैसे
अपने ही आंगन में
गुनगुना रहा हो
कोई कालातीत गीत
अपने ही लिए
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
गुरुवार, ३ मार्च २०११
1 comment:
परमार्थियों का जीवन है यह।
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