स्वर्णिम दिन
को आलिंगनबद्ध करने
बढाता हूँ हाथ
बीच में आ जाता है कोलाहल
२
सवाल वही पुराने
उठ जाते हैं
अपने अधूरेपन का झंडा उठाये
शोर मचा कर
तोड़ते हैं
एकाग्रता की तान
३
मेरे पास
सबसे बहुमूल्य जो है
वो है मेरा ध्यान
जबसे ये समझ कर
हर क्षण की ओर देने लगा हूँ ध्यान
शोर को पार कर
असीम की अनाम आभा में घुल जाना
होने लगा है आसान
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
मंगलवार, १ मार्च २०११
4 comments:
सवाल वही पुराने
उठ जाते हैं
अपने अधूरेपन का झंडा उठाये
शोर मचा कर
तोड़ते हैं
एकाग्रता की तान .......
exactly true.
...nice explanation...nice poetry.
शरीर के शोर के पार ही मन की शान्ति है।
Dhanywaad Rashmiji aur Praveenjee
is shubhkaamna ke saath kee ham sab
'bahoomooly' ke prati sajag rahen
sandar hey sa.....bahut jordar
Post a Comment