(चित्रकार - प्रत्युष व्यास ) |
(1)
एक चेहरा
चलती गाडी में
खिड़की के शीशे पर
बनाया था
बेटे ने
बाहर की ठण्ड
और अन्दर की ऊष्मा ने
सुलभ करवा दिया था एक
कैनवास सा
और ये जानते हुए भी
की यात्रा पूरी होने से बहुत पहले ही
मिट जाना है ये चेहरा
हमें अच्छा लगा था
अँगुलियों की तूलिका से
कुछ नया रचने की वृत्ति का
इस तरह प्रकट होना
(2)
अब मेरे पास
नहीं है शेष
कुछ भी नया
कहने को तुमसे
दोहरा भर रहा हूँ
पुनर्व्यस्थित कर
वह सब
जो कहा जा चुका है
पर जिसे कह कर भूल गया हूँ मैं
और जिस सुन कर भूल गए हो तुम
स्मृति
पुराने को नया
और नए को पुराना करने का खेल भी
खेलती है
बिना किसी पूर्वघोषणा के
और हर बार
हमें लगता है
की हम स्मृति से जीत जाते हैं
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
रविवार, २० फरवरी २०११
5 comments:
अद्भुत रचनाएँ हैं ...बहुत सुन्दर ..
Dhanyawaad Sangeetajee
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 22- 02- 2011
को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.uchcharan.com/
अच्छी रचना ,बधाई
दोनो रचनाये अपने आप मे बेजोड्।
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