Friday, February 18, 2011

जब मैं नहीं होता हूँ


पहेलियाँ 

मेरे किये से नहीं
मेरे होने से होता है
और
मैं तब होता हूँ
जब मैं नहीं होता हूँ


सुरक्षित रहने की चाहवाले
मिट जाते हैं
और
वो
जो
अपने से कुछ बड़ा, गरिमामय, विस्तृत विस्मय 
सुरक्षित रखने के लिए
अपनी सुरक्षा का विचार तक भूल जाते हैं  
वो हमेशा सुरक्षित रह जाते हैं

           


उसके साथ
सब कुछ स्पष्ट, सरल, सुन्दर, प्रेममय
आनंद से परिपूर्ण

उसका साथ
मुझे अनायास ही
रसमय, परिपूर्ण बना देता है

अगर जो कुछ है
बस उसके साथ के 'बोध का खेल' है
तो फिर 'मैं' क्या हूँ?

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
शुक्रवार,१८ फरवरी 2011  

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