हर दिन
अपने को
किसी ना किसी बात के लिए
क्षमा कर
जाग्रत रखता हूँ प्रसन्नता
हर दिन
किसी कसक को
स्वीकार्य माधुर्य के नए वस्त्र
पहना कर
सहेजता हूँ शांति
कांटे की तरह
चुभती स्मृतियों की चुभन को
कम कर देता है,
पावन प्रवाह
यह गंगा जल सा
यह गंगा जल सा
बहता है जो अंतस में
देता है आश्वस्ति
करवट स्थितियों की बदल सकता है
मन तुम्हारा
उस दृष्टि के साथ मिल कर
जो बंधती नहीं है
नाम और रूप में
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
मंगलवार, १५ फरवरी 2011
2 comments:
अपने को क्षमा करते करते न जाने कितना कलुष जमा कर चुके हैं।
Samajh kar kshma karne se kalush dhul jaata hai
sweekarne kee garima ko paramudaar
hee sikhlaata hai
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