Tuesday, February 15, 2011

करवट स्थितियों की


हर दिन
अपने को 
किसी ना किसी बात के लिए
क्षमा कर
जाग्रत रखता हूँ प्रसन्नता

हर दिन
किसी कसक को
स्वीकार्य माधुर्य के नए वस्त्र
पहना कर
सहेजता हूँ शांति
कांटे की तरह 
चुभती स्मृतियों की चुभन को 
कम कर देता है,
पावन प्रवाह
यह गंगा जल सा
बहता है जो अंतस में


देता है आश्वस्ति
करवट स्थितियों की बदल सकता है
मन तुम्हारा
उस दृष्टि के साथ मिल कर
जो बंधती नहीं है
नाम और रूप में

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
मंगलवार, १५ फरवरी 2011


2 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

अपने को क्षमा करते करते न जाने कितना कलुष जमा कर चुके हैं।

Ashok Vyas said...

Samajh kar kshma karne se kalush dhul jaata hai
sweekarne kee garima ko paramudaar
hee sikhlaata hai

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