यह स्थल
जहां धुल जाता है
सब संताप,
मिल जाता है
पुलकित
अपना आप
यह उपवन
जहाँ दिख जाता है
प्रभात,
अंतरतम से
फिर मिल जाती
प्रेम की सौगात
यह स्थल
नित्य शुद्ध
स्फूर्तिदायक
निर्मल आभा वाला,
यह स्थल
जहाँ सुलभ है
निश्छल, निष्कलंक
मौन रखवाला
इस स्थल का पथ
और पता
स्वयं ही
याद ना रख पाऊँ
फिर भी
प्रयास करता हूँ
वहां की कथा
तुम्हें भी सुनाऊँ
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
गुरूवार, १० फरवरी २०११
1 comment:
सबको उस पथ जाने की चाह है।
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