रह नहीं सकते
एक से
शांत, समन्वित, रसमय, मधुर
हमेशा
सन्दर्भ के साथ
होना ही है
अलग-अलग आरोह-अवरोह
मन की तरंगो का
असहमति और अपेक्षाजन्य तनाव
उगा सकता है
विवादी स्वर
साधना
यानि शीघ्रता से
मन को सम तक ले आना
ऐसे की
छिन्न-भिन्न ना हों
आन्तरिक सौन्दर्य के तंतु ,
और जल्द ही हो जाए जाग्रत
सुन्दर अनुभूति
और सहज स्नेह का
शीतल आलोक
साधना
समझ की शाश्वत सीढ़ियों
पर चढ़ते हुए
तात्कालिकता में भी
तृप्ति का स्वाद
उंडेल देती है
और
सार सुधा प्रवाह
बन जाता है
हर अनुभव
हर अनुभूति
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
शुक्रवार, ११ फरवरी 2011
1 comment:
मन गहरा होने लगे तो तात्कालिता में भी तृप्ति मिल जाती है।
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