Sunday, January 23, 2011

अब करें विश्व सत्कार प्रिये



चल देह द्वार के पार प्रिये
देखें अपना विस्तार प्रिये
इस मुक्त गगन की गोदी में
है कहाँ जीत और हार प्रिये

हम-तुम ही तो हैं प्यार प्रिये
अपनी है सतत बहार प्रिये
फिर अविनाशी के नाम उठी 
एक नूतन सरस पुकार प्रिये

है मधुर स्वपन झंकार प्रिये
इसमें साँसों का सार प्रिये
खोने पाने का खेल छोड़ 
अब करें विश्व सत्कार प्रिये


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२३ जनवरी २०११





1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

देह के परे देखने से सत्य दिखने लगता है।

सुंदर मौन की गाथा

   है कुछ बात दिखती नहीं जो  पर करती है असर  ऐसी की जो दीखता है  इसी से होता मुखर  है कुछ बात जिसे बनाने  बैठता दिन -...