चल देह द्वार के पार प्रिये
देखें अपना विस्तार प्रिये
इस मुक्त गगन की गोदी में
है कहाँ जीत और हार प्रिये
हम-तुम ही तो हैं प्यार प्रिये
अपनी है सतत बहार प्रिये
फिर अविनाशी के नाम उठी
एक नूतन सरस पुकार प्रिये
है मधुर स्वपन झंकार प्रिये
इसमें साँसों का सार प्रिये
खोने पाने का खेल छोड़
अब करें विश्व सत्कार प्रिये
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२३ जनवरी २०११
1 comment:
देह के परे देखने से सत्य दिखने लगता है।
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