शब्द ठिठुर कर
जमने ना पायें
आओ मिल कर
स्नेहिल ऊष्मा जगाएं
जिस गीत से
जीवन गति पाये
वो धुन मिल कर
गुनगुनाएं
हम नदिया है अगर
सागर तक जाएँ
और सागर है अगर
किनारा छू आयें
व्रत लिया है
सृजन का हमने
सन्देश अपनेपन का
उत्साह से गायें
उमड़ते साहस को
सहयात्री बनाएं
शब्द ठिठुर कर
जमने ना पायें
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१७ जनवरी २०११
2 comments:
ऊष्मा बनी रहनी चाहिए ....बहुत अच्छी अभिव्यक्ति
यह प्रवाह जमने न देगा।
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