नित्य प्रेम व्यवहार सिखाता है कोई
मधुर मौन में उड़ कर आता है कोई
अनदेखे हिस्से हैं भीतर जो सुन्दर
उनको आलोकित कर जाता है कोई
उसके बोल पांखुरी जैसे फूलों की
पर हर भय को दूर भगाता है कोई
हर पल नूतन होता है उससे रिश्ता
पग-पग रसमाधुर्य लुटाता है कोई
लेन-देन पर उसका कोई ध्यान नहीं
पूर्ण है जो, परिपूर्ण बनाता है वो ही
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१३ जनवरी २०११
1 comment:
वही हमारा प्रेम सरोवर।
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