Tuesday, January 11, 2011

तुम्हारे होने का संगीत




 
तुम्हारे होने का संगीत
बजता है 
तरह तरह से
तुम्हारी सोचों के साथ

कभी मधुर
कभी कर्कश
कभी आनंद बढ़ता
कभी आनंद घटता

तुम्हारे होने के संगीत में
रात भी है
दिन भी है
धूप भी है
छाँव भी है

इस मिश्रित संगीत में
तुम किसे अपना प्रमुख स्वर बनाते हो
इसका निर्णय तुम्हारा अपना है
इसका अभ्यास तुम्हे खुद करना है

धीरे धीरे
विवादी स्वर घटा कर
अपने साथ एक होते हुए
संवादी स्वर बढ़ा कर

अनंत की लय में
अपना आप देखते हुए
जिस क्षण तुम्हारा संगीत
क्षुद्र राग से परे
उदार विस्तार अपनाता है
तुम्हें सौन्दर्य का
चिर नूतन साम्राज्य मिल जाता है
और फिर 
जो भी तुम्हारे संपर्क में आता है
वो 
तुम्हारे संगीत को छूकर स्फूर्ति पाता है

तुम्हारा संगीत 
मूल को लेकर तब गाता है
जब तुमसे 
मेरेपने का भाव हट जाता है


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
मंगलवार, ११ जनवरी २०११


1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

अहं का स्वर कर्कश है।

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