अमृत पथ ही अपना पथ है
बात पुरानी नई शपथ है
अमृत पथ ही अपना पथ है
सभी व्रतों में एक बात है
सत्य का व्रत ही अपना व्रत है
वहां प्रेम हो रहे सहज ही
जहाँ त्याग की नित संगत है
कैसे गाऊँ झूठ की महिमा
अनुग्रह आँगन, कृपा की छत है
विविध रूप हैं मेरी माँ के
सुन्दर ऋतुओं की रंगत है
बीज वृक्ष कैसे बन आये
रेत नहीं, करूणा जाग्रत है
लिखा हथेली पर जननी ने
कभी ना डरना, तू अमृत है
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
८ जनवरी २०११
शनिवार
2 comments:
कविता मंत्र है ।
भय तो विषवत है।
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