यह कैसे हो जाता है
मन
खाली सलेट सा
जैसे
सुबह की पहली किरण
बिछा दे नई चादर
घर आंगन पर
नए सिरे से
कुछ रच देने के आमंत्रण के साथ
२
यह कैसे
समझ के नए सोपान चढ़ने
प्रस्तुत है
मन
जैसे आतुर हो
कोई शिशु उठा लेने पहला कदम
ना जाने किस क्षण
अब तक का सब जाना हुआ
अब तक का सब सीखा हुआ
हो गया है अर्पित
काल गंगा को
पूरी तरह हल्का होकर
पूरी तरह निर्मल होकर
निर्बद्ध
नए सिरे से
पूर्णता की ओर
चल देने प्रस्तुत हूँ
विस्मृत
सारी खरोचें, सारे घाव
सारी पीडाएं
स्वस्थ और मस्त
पूर्ण अपने आप में
अनाम आभा ने
दे दिया है
संपर्क अनायास
अक्षय प्यार से
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
मंगलवार, २८ दिसंबर २०१०
2 comments:
पूर्णता की ओर बढ़ाया हर पग पूर्ण है स्वयं में।
बहुत सुन्दर भाव ...
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