धीरे धीरे
सचमुच हथेली में सिमटा सा है संसार
मोबाइल युग में कितने लोगों तक
जुड़ने के सूत्र
सुलभ हैं हमारे अँगुलियों को
पर मन अब भी
अचानक
असम्पृक्त होकर सबसे
एकाकीपन में
ढूंढता है
वह संपर्क
जो चखा दे पूर्णता का स्वाद
२
एक वह संपर्क
जिससे सारयुक्त हो
सम्बन्ध और संवाद
कहीं टूट जाता है
क्या हमसे रूठ जाता है
चलते चलते, ध्यान हटते ही
कहीं छूट जाता है
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
शनिवार, १८ दिसंबर 2010
2 comments:
सच इसी आनन्द की खोज मे तो सारा जहाँ भटक रहा है……………बेह्द उम्दा प्रस्तुति।
मानवता के प्यार का बोझ मोबाइल नहीं सम्हाल पायेगा।
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