Saturday, December 18, 2010

पूर्णता का स्वाद

 
धीरे धीरे
सचमुच हथेली में सिमटा सा है संसार 
मोबाइल युग में कितने लोगों तक
जुड़ने के सूत्र
सुलभ हैं हमारे अँगुलियों को

पर मन अब भी
अचानक
असम्पृक्त होकर सबसे
एकाकीपन में
ढूंढता है
वह संपर्क
जो चखा दे पूर्णता का स्वाद


एक वह संपर्क
जिससे सारयुक्त हो
सम्बन्ध और संवाद

कहीं टूट जाता है
क्या हमसे रूठ जाता है
चलते चलते, ध्यान हटते ही
कहीं छूट जाता है 


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
शनिवार, १८ दिसंबर 2010

2 comments:

vandana gupta said...

सच इसी आनन्द की खोज मे तो सारा जहाँ भटक रहा है……………बेह्द उम्दा प्रस्तुति।

प्रवीण पाण्डेय said...

मानवता के प्यार का बोझ मोबाइल नहीं सम्हाल पायेगा।

सुंदर मौन की गाथा

   है कुछ बात दिखती नहीं जो  पर करती है असर  ऐसी की जो दीखता है  इसी से होता मुखर  है कुछ बात जिसे बनाने  बैठता दिन -...